सिन्धं व पजांब क्षेत्र की पुरोहिती का विवरण व इतिहास
पं॰ बालमुकुन्द महाराज व उनके सुपुत्र पं॰ नाथुराम महाराज जी की शिक्षा लाहौर पाकिस्तान से हुई है। क्योंकि पण्डिताई का आंवटित क्षेत्र सिन्ध व पंजाब था तो अधिकतर समय इसी क्षेत्र में गुजरा श्री बद्रीनाथ धाम में पट छः माह की अवधि (मई से नवम्बर) तक खुलते है। तो बाकी छः माह सारे पण्डे अपने-अपने क्षेत्रों का भ्रमण करते है। और हिन्दू वैश्णव धर्म का प्रचार व अध्यात्मिक ज्ञान का प्रसार करते है। भारत पाकिस्तान विभाजन के समय पं॰ नाथुराम महाराज के सुपुत्र पं॰ सन्तलाल महाराज ने पणडावृत्ति का बुरा समय देखा है। सिन्धी व पंजाबी लोंग अपनी सम्पन्नता और
देवप्रयाग भारत के उत्तराखण्ड राज्य में स्थित एक नगर एवं प्रसिद्ध तीर्थस्थान है। यह अलकनंदा तथा भागीरथी नदियों के संगम पर स्थित है। इसी संगम स्थल के बाद इस नदी को पहली बार 'गंगा' के नाम से जाना जाता है। यहाँ श्री रघुनाथ जी का मंदिर है, जहाँ हिंदू तीर्थयात्री भारत के कोने कोने से आते हैं। देवप्रयाग अलकनंदा और भागीरथी नदियों के संगम पर बसा है। यहीं से दोनों नदियों की सम्मिलित धारा 'गंगा' कहलाती है। यह टेहरी से १८ मील दक्षिण-दक्षिण-पूर्व दिशा में स्थित है। प्राचीन हिंदू मंदिर के कारण इस तीर्थस्थान का विशेष महत्व है। संगम पर होने के कारण तीर्थराज प्रयाग की भाँति ही इसका भी नामकरण हुआ है।
नौवीं शताब्दी में आदि शंकरा द्वारा बद्रीनाथ को एक प्रमुख तीर्थ स्थल के रूप में फिर से स्थापित किया गया था। बद्रीनाथ में मंदिर हिंदुओं के लिए और विशेष रूप से वैष्णवों के लिए एक पवित्र तीर्थ स्थल है। बद्रीनाथ भी कई पर्वतारोहण मिशनों के लिए प्रवेश द्वार है जो नीलकंठ जैसे पहाड़ों की ओर जाता है. .
बद्रीनाथ का महत्व
बद्रीनाथ उत्तराखंड का एक छोटा, पवित्र शहर है। हिंदुओं के सबसे प्रतिष्ठित मंदिरों में से एक, इस शहर में स्थित बद्रीनाथ मंदिर, चार धाम यात्रा में शामिल है। मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है। बद्रीनाथ मंदिर 7 बद्री के बीच का प्राथमिक मंदिर है, जिसे सप्त बद्री के नाम से जाना जाता है। अन्य छह बद्री आदि बद्री, ध्यान बद्री, अर्ध बद्री, वृद्धा बद्री, भावना बद्री और योगध्यान बद्री हैं।